नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आचुके हन जिसमें भाजपा को करारी शिकस्त हुई है,भले ही इस बार आम आदमी की सीटें कम हुई हो लेकिन भाजपा के मिशन को नाकाम बना दिया है और सारी मेहनतों पर पानी फेर दिया है।
केजरीवाल की लहर में भाजपा जैसी शक्तिशाली पार्टी, और कांग्रेस पूरी तरह उड़ गई। आम आदमी पार्टी इस बार 63 सीटों पर आगे चल रही है, हालांकि यह संख्या पांच साल पहले संपन्न हुए चुनाव से चार सीटें कम हैं। जानकारी के लिये बता दें कि 70 विधानसभा सीट वाली दिल्ली विधानसभा में 2015 में आम आदमी पार्टी ने 67 सीटें जीतीं थीं। इस बार भी पार्टी साठ से अधिक सीट जीतती नज़र आ रही है।
इस बार दिल्ली विधानसभा में एक और मुस्लिम विधायक की बढ़ोतरी हुई है। पिछली बार दिल्ली विधानसभा में चार मुस्लिम विधायक थे, जबकि इस बार पांच मुस्लिम विधायकों ने आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी जीत दर्ज करने का सेहरा अमानतुल्लाह ख़ान के सर बंधा है।
अमानतुल्लाह ख़ान उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के अगवानपुर गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक सफर का आग़ाज़ राम विलास पासवान की पार्टी लोजपा से किया था। साल 2013 में उन्होंने लोजपा के टिकट पर ओखला से चुनाव लड़ा लेकिन तब किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। और वे ज़मानत भी नहीं बचा पाए।
लेकिन क़ुदरत को कुछ ही मंज़ूर था, 2013 में कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले अरविंद केजरीवाल ने 49 दिन सरकार चलाने के बाद इस्तीफा दे दिया। विधानसभा भंग हो गई, और दिल्ली में 2015 में मध्यवर्धी चुनाव हुए। इस बीच अमानतुल्लाह ख़ान का भी लोजपा से मोहभंग हो गया, और उन्होंने लोजपा से इस्तीफा देकर आम आदमी पार्टी की सदस्यता ले ली। 2015 के चुनाव में उन्हें आम आदमी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया इस बार किस्मत ने भी अमानतुल्लाह ख़ान का भरपूर साथ दिया। उन्होंने कांग्रेस के आसिफ मोहम्मद ख़ान को बड़े अंतर से हरा दिया।
केजरीवाल सरकार ने अमानतुल्लाह ख़ान को वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बना दिया, वक्फ बोर्ड में अमानत ने सराहनीय कार्य किए, उन्होंने वक्फ बोर्ड की काया पलट कर रख दी, जिसका नतीजा यह हुआ कि कभी सरकार के रहमो करम पर चलने वाला वक्फ बोर्ड खुद अपने पैरों पर खड़ा हो गया। अमानत की कर्तव्यनिष्ठा के बूते वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्तियों का किराया वसूलना शुरु किया, भ्रष्टाचार को समाप्त किया, जिसके कारण आज दिल्ली वक्फ बोर्ड अपने आप में ग़रीब लोगों की मदद करने में सक्षम है। अमानतुल्लाह ख़ान की सिफारिशों पर दिल्ली सरकार ने वक्फ बोर्ड के लिये 30 करोड़ रुपये का बजट बनाया।
अमानतुल्लाह ख़ान ने साल 2008 में बटला हाऊस एनकाउंटर के दौरान चर्चा में आए थे। उन्होंने इस एनकाउंटर के खिलाफ भूख हड़ताल की थी। अमानतुल्लाह की मांग की थी कि इस एनकाउंटर की सीबीआई जांच होनी चाहिए, उनकी मांग तो पूरी नहीं हो पाई, लेकिन इस मुद्दे को ज़ोर शोर से उठाने वाले अमानतुल्लाह ख़ान को एक सियासी पहचान मिल गई। इसी वजह से वे अक्सर भाजपा नेताओं के निशाने पर आ गए, भाजपा नेता अमानतुल्लाह ख़ान के बहाने केजरीवाल पर भी निशाना साधते रहे हैं। अरविंद केजरीवाल के साथी रहे कुमार विश्वास तक अमानतुल्लाह ख़ान के बहाने अरविंद केजरीवाल पर हमलावर होते रहे हैं।
लेकिन इस सबसे बेपरवाह अमानतुल्लाह ख़ान का सियासी क़द लगातार बढ़ता जा रहा है। माना जाता है कि मटियामहल से चुनाव जीतने वाले शोएब इक़बाल को भी अमानतुल्लाह ख़ान ने आपकी सदस्यता दिलाई है। इतना ही नहीं सीलमपुर से जीत दर्ज करने वाले अब्दुल रहमान के सर पर भी अमानतुल्लाह ख़ान का हाथ है। माना जाता है कि अमानतुल्लाह ख़ान की सिफारिशों पर ही अब्दुल रहमान को आम आदमी पार्टी ने टिकट दिया है। अमानतुल्लाह ख़ान द्वारा पार्टी मे लाए गए दोनों नए चेहरे शोएब इक़बाल और अब्दुल रहमान ने भी इस चुनाव में जीत दर्ज की है। इन दोनों उम्मीदवारों की जीत अमानतुल्लाह ख़ान के क़द को और अधिक मज़बूत करेगी।
आप ने दूसरी बार हाजी यूनुस पर जताया भरोसा
मुस्तफबादा से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हाजी यूनुस ने जीत दर्ज करते हुए भाजपा विधायक जगदीश प्रधान को हराया है। हाजी यूनुस साल 2015 में भी विधानसभा का चुनाव लड़े थे लेकिन तब किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और वे मामूली अंतर से हार गए थे। इस बार आम आदमी पार्टी ने उन पर फिर भरोसा जताया और उन्होंने जीत दर्ज की। मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले हाजी यूनुस मुस्तफाबाद में ही रहते हैं, उनका हज और उमराह कराने का कारोबार है।
शोएब इक़बाल का क़द का ‘आपको’ मिला लाभ
दिल्ली चुनाव की अधिसूचना जारी होने से ऐन पहले कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए शोएब इक़बाल पुरानी दिल्ली के मटियामहल के कद्दावर नेता है। शोएब इक़बाल अब से पहले पांच बार विधायक रह चुके हैं, दिलचस्प यह है कि पांचो बार उन्होंने अलग अलग पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी। शोएब इक़बाल साल 2015 में जीत दर्ज नहीं कर पाए थे, उन्हें आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार आसिम अहमद ख़ान से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन इस बार उन्होंने चुनाव से पहले कांग्रेस से इस्तीफा देकर आम आदमी पार्टी की सदस्यता ली और जीत दर्ज की है।
पार्षद से विधायक बने अब्दुल रहमान
सीलमपुर सीट भी उन सीटों में शामिल थी जिस पर आम आदमी पार्टी ने मौजूदा विधायक का टिकट काटकर दूसरे प्रत्याशी को टिकट दिया था। सीलमपुर से साल 2015 में हाजी इसराक़ ने आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता था, और पांच बार के विधायक मतीन चौधरी को करारी को शिकस्त दी थी। लेकिन इस बार पार्टी ने हाजी इसराक का टिकट काटकर उनके स्थान पर अब्दुल रहमान को प्रत्याशी बनाया।
अब्दुल रहमान आम आदमी पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरे और जीत दर्ज करने में सफल रहे। मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के डासना के रहने वाले अब्दुल रहमान ने अपने राजनीतिक सफर का आग़ाज़ दिल्ली नगर निगम चुनाव से किया था। वे आम आदमी पार्टी के टिकट पर पार्षद चुने गए थे।
इमरान हुसैन का दबदबा बरक़रार
राष्ट्रीय लोकदल से साल 2012 में पार्षद का चुनाव लड़कर जीत दर्ज करने वाले इमरान हुसैन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। उन्होंने दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्विद्याल से पढ़ाई की. साल 2012 में पार्षद का चुनाव जीता, और उसके बाद आम आदमी पार्टी की सदस्यता ले ली। 2015 में उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता और लगातार पांच बार विधायक रहे हारून यूसुफ को हरा दिया। इमरान हुसैन केजरीवाल सरकार में मंत्री हैं। 11 फरवरी को आए दिल्ली विधानसभा के चुनाव नतीजे में उन्होंने अपना दबदबा बरक़रार रखते हुए एक बार फिर हारून यूसुफ को हराकर जीत दर्ज की है।